कुशोत्पाटन के दिन कुश उखाड़ने का विशेष महत्त्व :- पण्डित पंकज झा शास्त्री
न्यूज़ डेस्क : मधुबनी
भाद्रपद अमावस्या को बहुत ही महत्व दिया गया है। यह अमावस्या इस बार 14 सितम्बर गुरुवार को मनाई गई। इस भाद्रपद अमावस्या के दिन पूजा करने सें कालसर्प दोष दूर होता है। इस अमावस्या के दिन धार्मिक रूप से कुश को इकट्ठा किया जाता है। इस कुश का प्रयोग साल भर धार्मिक एवं पितृ कार्यों के प्रयोग में लिया जाता है। इस भाद्रपद अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस बार कुशोत्पाटन का समय सुबह से लेकर पूरे दिन को शुभ माना गया है।
मधुबनी के स्थानीय पण्डित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि कुश की पत्तियाँ नुकीली, तीखी और कड़ी होती हैं। धार्मिक दृष्टि से यह बहुत पवित्र समझा जाता है और इसकी चटाई पर राजा लोग भी सोते थे। इसका आसन, अंगूठी और भी कई वस्तु बनाकर उपयोग में लाया जाता है। वैदिक साहित्य में इसका अनेक स्थलों पर उल्लेख है। अथर्ववेद में इसे क्रोधशामक और अशुभनिवारक बताया गया है। श्री शास्त्री का कहना है कि आज भी नित्य,नैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है। कुश से तेल निकाला जाता था, ऐसा कौटिल्य के उल्लेख से ज्ञात होता है। भावप्रकाश के मतानुसार कुश त्रिदोषघ्न और शैत्य-गुण-विशिष्ट है। उसकी जड़ से मूत्रकृच्छ, अश्मरी, तृष्णा, वस्ति और प्रदर रोग को लाभ होता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से माना जाता है कि इस पवित्र घास में प्यूरिफिकेशन एजेंट होते हैं। इसका उपयोग दवाईयों में भी किया जाता है। कुश में एंटी ओबेसिटी, एंटीऑक्सीडेंट और एनालजेसिक कंटेंट है। इसमें ब्लड सुगर मेंटेन करने का गुण भी होता है। गरुड़ अपनी माता की दासत्व से मुक्ति के लिए स्वर्ग से अमृत कलश लाये थे, उसको उन्होंने कुशों पर रखा था। अमृत का संसर्ग होने से कुश को पवित्री कहा जाता है महाभारत आदिपर्व के अध्याय 23 का 24 वां श्लोक। मान्यता है कि जब किसी भी जातक के जन्म कुंडली या लग्न कुण्डली में राहु की महादशा आती है तो कुश के पानी में डालकर स्नान करने से राहु की कृपा प्राप्त होती है। कुश वैसे तो किसी भी अमावस्या में उपयोग में लाया जा सकता हैं, लेकिन भाद्रपद अमावस्या के कुश का विशेष महत्व होता है। मिथिलांचल में लोगों का मानना है कि जिनके पिता स्वर्गलोक प्रस्थान कर चुके हैं, उन्हें इस दिन जरूर कुश उखाड़ना चाहिये।
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