तुष्टीकरण और जाति की राजनीति पर "नमो मैजिक" पड़ा भारी
सम्पादकीय : उदय कुमार झा
03:12:2023
मधुबनी : चार राज्यों - मध्यप्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और छत्तीसगढ़ - के विधानसभा के लिए हुए चुनावों में केवल एक राज्य - तेलंगाना - में काँग्रेस को पूर्ण बहुमत दिख रहा है । बाँकी तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार आ रही है । मध्यप्रदेश में पिछले 18 वर्षों से भाजपा की सरकार है । इस चुनाव से पहले I.N.D.I.A. गठबंधन के नेता तुष्टीकरण की राजनीति में सनातन धर्म पर लगातार हमले करते रहे, काँग्रेस सहित गठबंधन के कई दूसरे दल इन बातों पर चुप्पी साधे रहे । इन राज्यों में होनेवाले चुनावों से ठीक पहले बिहार में जातिगत गणना को प्रकाशित कर पूरे देश में यह संदेश फैलाने की कोशिश की गई कि यही गठबंधन जिस जाति की जितनी जनसंख्या होगी, उसकी उतनी भागीदारी देने की व्यवस्था की गारंटी दे सकती है । मोदी विरोध में सभी नेता एक स्वर से सेक्युलर राजनीति की बात करते हुए भाजपा के राष्ट्रवाद पर लगातार हमलावर बने हुए थे । क्रिकेट के विश्व कप मैच में भारतीय क्रिकेट टीम की हार का ठीकरा भी काँग्रेस सहित कई विरोधी दल के नेताओं ने मोदी पर फोड़ा । कुल मिलाकर, सनातन धर्म के विरोध और तुष्टीकरण की राजनीति का एक भी अवसर विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने नहीं गँवाया ।
आज भारत के मतदाता काफी जागरूक हो गए हैं और सुनते तो सबकी हैं, किन्तु करते अपने मन की हैं । मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के पक्ष में जो अंडर करंट चल रहा था, उसे काँग्रेस के नेता भाँप तक नहीं पाए । सभी लोग इसी मुगालते में रह गए कि सरकार विरोधी लहर का फायदा उन्हें मिल जाएगा । जाति की राजनीति करनेवालों को यह सबक मिला कि आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में आदिवासियों ने मोदी की गारंटी पर भरोसा जताया है, न कि जाति आधारित राजनीति पर । राजस्थान में मुख्यमंत्री के साथ सचिन पायलट का अंतर्कलह ऊपर से तो शान्त दिख रहा था, किन्तु चुनाव परिणाम ने स्पष्ट कर दिया कि गहलोत सरकार में शायद सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा था और लोग उन्हें सरकार बनाने का मौका नहीं देना चाह रहे थे । तेलंगाना में भाजपा लगभग नहीं के बराबर थी, किन्तु इस चुनाव ने उसका सीट और मत प्रतिशत भी बढ़ा है । प्रधानमंत्री मोदी ने I.N.D.I.A. गठबन्धन को जो 'घमंडिया गठबंधन' नाम दिया, उससे लोगों ने अपनी सहमति जता दी । राजस्थान जैसे बड़े प्रदेश और आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में काँग्रेस की सरकार थी, जो दुबारा सत्ता में आने को बेताब तो थी, किन्तु मतदाताओं ने काँग्रेस को सिरे से ख़ारिज कर दिया । काँग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री के प्रति बोला गया अपशब्द शायद मतदाताओं को रास नहीं आया । I.N.D.I.A. गठबंधन में राष्ट्रीय स्तर पर काँग्रेस खुद को बड़े भाई की भूमिका में देख रही थी, किन्तु मतगणना के बाद दूसरे क्षेत्रीय दलों का जोर भी अब काँग्रेस पर देखने को मिलेगा । गरीबों को मुफ्त राशन और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री लाड़ली योजना एक गेम चेंजर साबित हुआ है । साथ ही, प्रधानमंत्री द्वारा विकास कार्यों की चर्चा मतदाताओं पर प्रभाव छोड़ने में भी सफल साबित हुई ।
देखा जाए तो हिन्दी पट्टी में भाजपा काफी मजबूत स्थिति में खुद को खड़ी कर चुकी है । राहुल गाँधी का 'प्रेम की राजनीति' और लोगों को जोड़ने की राजनीति मतदाताओं पर केवल तेलंगाना में ही असर डालने में कामयाब हो पाई । कर्णाटक में भाजपा को हराकर काँग्रेस ने जो अपना दमखम दिखलाया था, वह इन तीनों राज्यों में फिर दुहरा न सका । इसलिए इन राज्यों में " नमो मैजिक" पूरा चल गया और तुष्टीकरण एवं जाति की राजनीति पूरी तरह असफल साबित हुआ ।
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