भारतीय सनातन परम्परा में धर्मशास्त्र का एक अलग विशेष स्थान : डॉ. द्वारिकानाथ झा
न्यूज़ डेस्क : मधुबनी
महामहोपाध्याय दामोदर ठाकुर रचित धर्मशास्त्र के ग्रन्थ दिव्यनिर्णय का लोकार्पण कामेश्वर सिंह दरभंगा सँस्कृत विश्वविद्यालय के सभागर में कुलपति विद्यावचस्पति डॉ शशि नाथ झा आदि सँस्कृत विश्वविद्यालय के मूर्धन्य विद्वानों के कर कमलों द्वारा किया गया । इस पुस्तक का प्रकाशन भी विश्वविद्यलय ने ही किया है, जिसका सम्पादन मिथिला के दीप गाँव निवासी एवं वर्तमान में साहित्य विभागाध्यक्ष धर्म समाज सँस्कृत कालेज मुज़फ्फरपुर के डॉ द्वारिका नाथ झाजी ने किया है । इस पुस्तक में सामान्यविधि , तुलादिव्यविधि , अग्निदिव्यविधि , उदकदिव्यविधि , विषदिव्यविधि ,कोषदिव्यविधि, तंडुल दिव्यविधि , तप्तमाषदिव्यविधि , धर्माख्यदिव्यविधि, फालदिव्यविधि , शपथदिव्यविधि आदि पठनीय है । डॉ द्वारिकानाथ झा ने कहा कि भारतीय सनातन परम्परा में धर्मशास्त्र का अपना एक विशेष स्थान है । वर्तमान न्यायालय में जहां मनुष्य के द्वारा उपस्थापित प्रमाण के आधार पर न्याय की व्यवस्था दी जाती है, किन्तु जहां मानवीय प्रमाण का अभाव है वहां न्यायालय मौन हो जाती है।इसके बाद ही दिव्यनिर्णय की प्रक्रिया से न्याय मिलती थी। यह पुस्तक जिज्ञासुजनों के लिए पठनीय एवं अनुकरणीय है ।
इस पुस्तक के लोकार्पण के वाद पूर्व कुलपति प्रो अर्क नाथ चौधरी, श्री जय कुमार झा आदि ने शुभकामना प्रेषित किया है तो वहीं परिजनों में ज्योतिषाचार्य डॉ राज नाथ झा , श्रीपति नाथ झा ,मन्त्र नाथ झा ,शम्भु नाथ झा, डॉ राघव नाथ झा, डॉ प्रेम नाथ झा आदि में पर्याप्त हर्ष व्याप्त है ।
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