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मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024

बिहार के सबसे ऊंचे दुर्गामंदिर जयनगर बस्ती में धूमधाम से हो रही पूजा

 बिहार का सबसे ऊंचा दुर्गा मंदिर जयनगर बस्ती में बड़ी धूमधाम से हो रही पूजा : यहाँ की महिमा है अपरंपार






रिपोर्ट : सुमित कुमार राउत

जयनगर 





बिहार के मधुबनी जिले के जयनगर में भारत-नेपाल सीमा से महज तीन किमी की दूरी पर मां दुर्गे का यह भव्य एवं सुंदर मंदिर स्थापित है। मंदिर की ऊंचाई 118 फीट है। बिहार में सबसे ऊंचा दुर्गा मंदिर के नाम से यह मंदिर जाना जाता है। शक्तिपीठ से विख्यात मां दुर्गे का यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। जयनगर शहर से सटा हुआ बस्ती पंचायत स्थित पौराणिक एवं ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर का मनमोहक दृश्य, श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। नेपाल समेत सूबे के विभिन्न क्षेत्रों से मां दुर्गे की दर्शन एवं पूजा अर्चना हेतु श्रद्धालु मंदिर प्रांगण में पहुंचते रहे हैं।नवरात्र में शाम में होने वाली महाआरती श्रद्धालुओं के लिए आकर्षक का केंद्र बना है। दूर दराज से श्रद्धालु यहां आकर महाआरती में शामिल होते हैं। बच्चे बूढ़े जवान सभी हाथ जोड़े मां की आराधना में मग्न हुए डूबे रहते हैं। वैसे तो इस मंदिर में प्रतिदिन सुबह शाम विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना एवं आरती की जाती है, लेकिन नवरात्र की महाआरती श्रद्धालुओं के लिए विशेष होता है। सब की मुरादें पूरी करने वाली मां दुर्गे की मंदिर में बारह मास शादी ब्याह, मुंडन, संस्कार एवं धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं। साल में दो बार मां दुर्गा की भव्य पूजा की जाती है। आसिन एवं चैती दुर्गा पूजा सदियों से होती रही है। मां की पट खुलते ही मंदिर प्रांगण में छागरों की बली दी जाती है। हजारों की संख्या में छागर की बली चढ़ाई जाती है।





शंकराचार्य ने कराई थी प्राण प्रतिष्ठा :


3 जून 2004 को पूज्य पाद्य गोवर्धन पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाराज ने मंदिर के गर्व गृह में मां दुर्गे, मां सरस्वती, मां काली, मां लक्ष्मी, गणेश, मां काली समेत अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का प्राण प्रतिष्ठा वैदिक मंत्रोचारण के साथ विधि विधान के साथ किया था। इससे पूर्व प्राकृतिक खर, मिट्टी, भूसा से कुशल कारिगरों के द्वारा प्रतिमा करायी जाती थी। प्राकृतिक शुद्धिकरण का ख्याल से मंदिर मंदिर में संगमरमर की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा करने का निर्णय क लिया। मां दुर्गे के पास अक्सर कबूतर बैठी होती हैं, जिन्हें दर्शन कर श्रद्धालु धन्य हो जाते हैं।

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