अम्बिकानाथ मिश्र जन्मशती वर्ष
स्मृति ग्रंथ "द हेडमास्टर" का लोकार्पण एवं स्कूल के छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों के बीच परिचर्चा
आज दिनांक 23 मार्च 2022 को लक्ष्मीश्वर एकडेमी, सरिसब, मधुबनी, बिहार के परिसर में स्कूल के वर्तमान छात्र-छात्राओं, शिक्षकों एवं पूर्व छात्र -छात्राओं के बीच इस स्कूल के स्वनामधन्य पूर्व प्रधानाध्यापक अम्बिकानाथ मिश्र स्मृतिग्रन्थ 'द हेडमास्टर' का लोकार्पण किया गया। यह लोकार्पण सह विमर्श कार्यक्रम लक्ष्मीश्वर एकडेमी के प्रधानाध्यापक श्री चंद्र मोहन ठाकुर, यदुनाथ सार्वजनिक पुस्तकालय के अध्यक्ष प्रो.अशर्फी कामति, संपादक डा. अरविन्द कुमार सिंह झा, मैथिली विभागाध्यक्ष,आर. के. कॉलेज ,मधुबनी; डा. अजीत मिश्र, मैथिली विभागाध्यक्ष, एम एल एस कॉलेज , सरिसब पाही एवं डा. निर्भय नाथ मिश्र, संयुक्त राष्ट्रसंघ की संस्था यूनिसेफ के अधिकारी की गरिमामय उपस्थिति में किया गया।
इस अवसर पर अम्बिकानाथ मिश्र जन्मशताब्दी वर्ष में लक्ष्मीश्वर एकेडमी क 12वीं कक्षा में गणित विषय में 95 प्रतिशत अंक लानेवाले दो छात्र श्री योगेश कुमार झा एवं श्री संजीत कामति को ‘रामानुज स्कॉलरशिप’ के तहत 10,000 रुपया प्रति छात्र छात्रवृत्ति दी गई। ये स्कॉलरशिप इस स्कूल के पूर्व छात्र एवं पूर्व IFS अधिकारी तथा 1968 ई. के मैट्रिक परीक्षा के सम्पूर्ण बिहार में टॉपर रहे श्री सच्चिदानंद झा द्वारा लक्ष्मीश्वर एकडेमी के विख्यात प्रधानाध्यापक अम्बिकानाथ मिश्र की स्मृति में भीखू झा एवं उनके परिवार (ग्राम लोहना) के सौजन्य से गणित पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए इसी वर्ष से शुरू किया गया है। साथ ही, उन्हें पारितोषिक के तहत 'द हेडमास्टर' पुस्तक की एक-एक प्रति भी दिया गया।
इस अवसर पर सभी अतिथियों ने इस पुस्तक के सम्बन्ध में अपने विचार रखे। साथ ही, लक्ष्मीश्वर एकडेमी के इतिहास एवं इसकी परंपरा एवं उपलब्धि पर सबों द्वारा परिचर्चा किया गया। कई छात्र- छात्राओं ने इसमें दिलचस्पी दिखाते हुए कई प्रश्न भी पूछे।
अपने आप में यह किताब बहुत अलग और खास है। यह किताब अपने "हेडमास्टर" के प्रति उसके छात्र- छात्राओं की श्रद्धाजंलि है। उनके जन्मशती वर्ष में इस पुस्तक का लोकार्पण उनके सभी छात्र-छात्राओं, समाज के सभी वर्गों एवं यदुनाथ सार्वजनिक पुस्तकालय के लिए असीम गौरव का विषय है।
इस पुस्तक का प्रकाशन इसमाद, दरभंगा ने किया है। मिथिला के इतिहास तथा अन्य विषयों पर इसमाद के दर्जनों पुस्तक प्रकाशित हैं। 640 पन्ने की इस किताब में अंबिकानाथ मिश्र के शताधिक छात्र- छात्राओं एवं विद्वानों द्वारा 116 गंभीर शोधपरक आलेख एवं स्मृतियाँ हैं। अम्बिकानाथ मिश्र के हज़ारों छात्र- छात्राओं में कोई आइएएस रहा है तो कोई डॉक्टर, कोई प्राध्यापक है तो कोई बैंकर, कोई शिक्षक है तो कोई साहित्यकार, कोई उद्योगपति तो कोई प्रशासक, कोई स्वरोजगार में है तो कोई राजनीति में, कोई कलाकार है तो कोई खिलाड़ी। ऐसा कोई क्षेत्र नही है जिसमे इनका छात्र गौरव नहीं बढ़ाते हों। इस पुस्तक में 1948 - 1979 के बीच स्कूल में रहे अम्बिकानाथ मिश्र के छात्र - छात्राओं ने लिखा है।
वक्ताओं में डॉ अजीत मिश्र ने कहा कि यह पुस्तक शिक्षा के लिए समर्पित अम्बिकानाथ मिश्र के अवदानों का एक दर्पण है जो वर्तमान समाज में शिक्षा के प्रति शिक्षकों के समर्पण के लिए पढ़ने योग्य है। अम्बिकानाथ मिश्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। डॉ अरविंद कुमार सिंह झा ने पुस्तक का विवरण देते हुए इसके तीनों खण्डों पर विस्तृत विवेचन किया। इस पुस्तक के तीन खण्ड हैं, जिनमें प्रथम खण्ड में अम्बिकानाथ मिश्र के प्रति संस्मरण एवं श्रद्धांजलि दी गयी है तथा दूसरे खण्ड में उनके जन्मस्थान लालगंज गाँव तथा उस परिसर की सांस्कृतिक विरासत को समेटा गया है। तीसरे खण्ड में भारतीय परिप्रेक्ष्य के शोध आलेख हैं। कुल मिलाकर 640 पृष्ठों की इस पुस्तक में 116 आलेख हैं। प्रो अशर्फी कामति ने अपना उद्गार एवं अनुभव व्यक्त करते हुए कहा कि इस पुस्तक अम्बिकानाथ मिश्र, उनका परिसर तथा परिवेश के अमूर्त इतिहास की धारा को व्याख्यायित करता है, जो वर्तमान पीढ़ी के युवाओं के लिए प्रेरक सिद्ध होगा। डा निर्भय नाथ मिश्र ने स्कूल के इतिहास पर विस्तृत चर्चा की ।
वरिष्ठ शिक्षक सुनील कुमार झा के धन्यवाद ज्ञापन द्वारा कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। विक्की मंडल के कुशल नेतृत्व मे समस्त कार्यक्रम संचालित हुआ ।
अम्बिकानाथ मिश्र मिथिला के प्रख्यात विभूति अयाची मिश्र एवं शंकर मिश्र के वंशज हैं। इनके पिता यदुनाथ मिश्र न्यायशास्त्र के अप्रतिम विद्वान थे। न्याय पर लिखी गई इनकी 4 मूल पुस्तक अपने विषय में अमूल्य धरोहर हैं।
अम्बिकानाथ मिश्र ने अपने जीवन को शिक्षण के क्षेत्र में समर्पित कर दिया। एक लब्धप्रतिष्ठ शिक्षक एवं शैक्षणिक प्रशासक के रूप में इन्होंने अपने को स्थापित किया एवं यशस्वी हुए। ये अंग्रेजी, गणित और अर्थशास्त्र विषय के विद्वान होने के साथ-साथ विभिन्न भारतीय भाषाओं यथा संस्कृत, बांग्ला, मैथिली आदि के ज्ञाता एवं मर्मज्ञ थे। लक्ष्मीश्वर एकेडमी, सरिसब, मधुबनी में इन्होंने 34 वर्षों तक शिक्षण कार्य किया। इस दौरान श्री मिश्र ने अनगिनत छात्रों का शैक्षणिक जीवन एवं चरित्र का निर्माण किया। इनकी इस उपलब्धि के उदाहरण शिक्षा, साहित्य, प्रशासन, विज्ञान, गणित, चिकित्सा शास्त्र आदि विषयों में सफल हुए कई छात्र - छात्राएँ समाज के गौरव रहे हैं।
अम्बिकानाथ मिश्र का जन्म 13 फरवरी, 1921 ई. को मधुबनी जिले के झंझारपुर प्रखंड के लालगंज ग्राम में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा दरभंगा के राज हाई स्कूल में हुई। इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा 1937 ई. में तत्कालीन पटना विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी (स्कॉलरशिप सहित) में पास की। पटना विश्वविद्यालय से इन्होंने बी.ए. (अर्थशात्र आनर्स) की परीक्षा 1941 ई. में पास की। पारिवारिक कारणों से श्री मिश्र उच्चतर शिक्षा (एम. ए., अर्थशास्त्र) को पूरा नहीं कर सके। 1947 में इन्होंने पटना ट्रेनिंग कॉलेज से 'डिप्लोमा इन एजुकेशन' की डिग्री हासिल की। श्री मिश्र 1947 से 1979 ई. तक लक्ष्मीश्वर एकेडमी, सरिसब के शिक्षक एवं प्रधानाध्यापक के पद पर रहे। 5 जून, 1993 को इनका निधन हुआ।
श्री मिश्र ने अर्थशास्त्र पर एक पुस्तक 'अर्थशास्त्र प्रवेश' लिखने के अतिरिक्त अपने जीवन काल के अंतिम चरण में सुभाष चन्द्र बोस की आत्मकथा का मैथिली में 'एक भारतीय यात्री' शीर्षक से अनुवाद किया, जो 2011 में प्रकाशित हुआ। 1944-45 में इन्होंने 'सर्चलाईट' दैनिक अखबार में पत्रकारिता भी की। निपुण अभिभावक तथा समर्पित समाजसेवी के साथ अम्बिकानाथ मिश्र 'हेडमास्टर' के रूप में प्रख्यात थे।
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