संस्कृत की उन्नति के लिए सदस्यों ने दिया भरोसा
सीनेट की 45वी बैठक में छाया रहा कम छात्रों की संख्या का मुद्दा
दरभंगा।
अध्यक्षीय अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव उपस्थापित करते हुए अभिषद सदस्य नगर विधायक संजय सरावगी ने कहा कि संस्कृत देव वाणी है। इसके उत्थान के लिए हमसभी का प्रयास जरूरी है। संस्कृत जन्म से मृत्यु तक हमारे साथ रहती है। तमाम शुभ कार्य संस्कृत के बिना सम्भव नही है। बावजूद बच्चे इस विषय मे नामांकन लेने से कतराते हैं।छात्रों की कम संख्या चिंता का विषय है। उन्होंने भरोसा दिया कि उनके स्तर से जो भी मुमकिन है संस्कृत के विकास के लिए वे जरूर करेंगे। इसी क्रम में उन्होंने सीनेट- सिंडिकेट के सदस्यों के साथ साथ सभी प्रधानाचार्यों, शिक्षकों से भी अपील की कि सभी मिलकर मंथन करें कि आखिर बच्चे संस्कृत में पढ़ने क्यों नहीं आते हैं? उन्होंने इसे रोजगारपरक बनाने पर भी बल दिया तभी बच्चों का झुकाव इस ओर सम्भव बताया। उन्होंने अनुकम्पा पर बहाली की वकालत की ।वहीं धन्यवाद प्रस्ताव के समर्थन में बोलते हुए मदन प्रसाद राय ने कहा कि संस्कृत की उन्नति जरूरी है।उन्होंने बहाली में आरक्षण रोस्टर को लागू करने को कहा। ललित कला भवन को लता मंगेशकर के नाम करने का प्रस्ताव दिया।
वहीं डॉ विनोदनन्द झा ने विश्वविद्यालय की प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुख्य प्रशासनिक भवन में जीर्णोद्धार के कार्य मे घोर गड़बड़ी हुई है।इसको लेकर कमेटी ने रिपोर्ट भी सौंप दी है लेकिन इसका कार्यान्वयन अभी तक नहीं हुआ है। ठेकेदार द्वारा कार्यो में कई गयी अनियमितता को जब तक दूर नही किया जाता है तबतक संवेदक को अनापत्ति प्रमाणपत्र नही दिया जाना चाहिये। विश्वविद्यालय प्रतिनिधि की अनुपस्थिति में कालेजों में हो रही बैठकों को विश्वविद्यालय स्वीकार कर रहा है यह बेहद ही दुखद है।सुनील भारती ने भी व्यवस्था का सवाल उठाया और कहा कि विश्वविद्यालय प्रतिनिधि का कोई नही सुनता। वहीं दुर्गेश राय ने सुझाव दिया कि आंतरिक आय बढ़ाने के लिए एक कमेटी गठित होनी चाहिये और यही कमेटी कालेजो की सम्पति का आकलन कर खासकर सड़क के किनारे भूखण्डों का व्यावसायिक उपयोग का तौर तरीके निर्धारित करेगी।उन्होंने संस्कृत शिक्षा बोर्ड से भी छात्रों की संख्या बढ़ाने की अपील की। इसी तरह अधिवक्ता प्रेम कुमार झा ने सुझाव दिया कि बच्चों को संस्कृत में बेहतर भविष्य दिखाइए तभी उनका झुकाव इस विषय की ओर होगा। छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए संस्थाओं, बुद्धिजीवियों का साथ लेकर स्थानीय स्तर पर सेमिनार व अन्य शैक्षणिक गतिविधियों को बढ़ाना होगा।वहीं डॉ रामप्रवेश पासवान ने मैथिली में विचार रखते हुए प्रस्ताव दिया कि विश्वविद्यालय में भीमराव अम्वेदकर चेयर की स्थापना हो।साथ ही अनुसूचित जन जाति के लिए प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था विश्वविद्यालय में हो। अतिथि शिक्षकों की समस्यों को भी उन्होंने उठाया।
डॉ विमलेश कुमार ने छात्र हितों को संजीदगी से उठाया।विश्वविद्यालय में चल रहे संरचना के कार्यों पर निगरानी की जरूरत भी बताई।उन्होंने भी मुख्य भवन के जीर्णोद्धार के कार्यो पर बड़ा प्रश्न चिह्न लगाते हुए कहा कि इस धरोहर को बचाइए।साथ ही उन्होंने पूर्व में पूछे गए सवालों का माकूल जबाब नही दिए जाने पर नाराजगी जताई। इसी क्रम में उन्होंने शिक्षा विभाग से हल ही में जारी उस पत्र की निंदा की जिसमे उपशास्त्री कालेज के कर्मियों को उच्च माध्यमिक स्तर की तरह सेवा शर्त में लाने की बात कही गयी है। उन्होंने कहा कि उपशास्त्री कॉलेज है तो फिर यहां के कर्मी कैसे उच्च विद्यालय की तरह हो जाएंगे। विश्वविद्यालय को इसका विरोध करना चाहिए। नहीं तो विश्वविद्यालय की स्मिता भी प्रभावित हो जाएगी। साल में दो बार सीनेट की बैठक बुलाने का मुद्दा भी इन्होंने उठाया। इसी तरह सुरेश प्रसाद राय ने भी व्यवस्था का सवाल उठाया और कहा कि उन्होंने आयुर्वेद परीक्षा से सम्बंधित सवाल पूछा था लेकिन मेरी जिज्ञासा शांत नहीं की गई। उन्होंने भी संस्कृत व छात्र हित मे कई सुझाव दिये। वहीं विधायक विनय कुमार चौधरी ने कहा जब भी सेमिनार आयोजित किया जाता है तो उसका प्रतिवेदन भी तैयार होना चाहिए जो संस्कृत विश्वविद्यालय में नही होता है।नैक मुल्यांकन में उन्होंने इसे उपयोगी बताया।उन्होंने जोर देकर कहा कि जो सही मायने में संस्कृत जनता है उसे रोजगार की कमी नही हो सकती।आज विद्वान पंडित का घोर अभाव है।वह दिन दूर नही जब कायदे से पंडित मिलेंगे ही नही।इसलिये संस्कृतज्ञ अपने बच्चों को भी देव भाषा अवश्य पढ़ाएं।उन्होंने सुझाव दिया कि सभी शिक्षक व प्रधानाचार्य अपना एक एक माह का वेतन दान दें ताकि संस्कृत में अब्बल आये बच्चों को छात्रवृति की अधिक राशि दी जा सके। इससे भी बच्चे संस्कृत की ओर मुखातिब होंगे। वहीं पूर्व कुलपति डॉ अरविंद कुमार पांडे कहा कि विश्वविद्यालय के कुछ पदाधिकारियों की सोच संकीर्ण है। उन्होंने संस्कृत के विकास में हर सम्भव मदद का भरोसा दिया साथ ही प्राइवेट छात्रों के प्रवेश पर अपनी सहमति जताई। राज्य सरकार से प्रस्वीकृत चार कालेजों की सूची सरकार को प्रेषित करने का प्रस्ताव दिया। वही *संजीव कुमार झा ने मांग की कि संस्कृत के छात्र भी डीएलएड में नामांकित हो*।इन्होंने भी विलास पैलेस के जीर्णोद्धार में भ्र्ष्टाचार का मुद्दा उठाया।प्रधानाचार्य डॉ अनिल ईश्वर ने कहा कि परीक्षा विभाग से सभी परेशान है। बच्चे परीक्षा पास कर गए लेकिन उन्हें अभी तक अंक पत्र नही मिला है। टीआर से वे काम चला रहे हैं जो घोर चिंता की बात है। समस्या बताने पर परीक्षा नियंत्रक कायदे से जबाव तक नही देते हैं।
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