*'शब्दाक्षर' त्रैमासिकी का लोकार्पण सफलतापूर्वक सम्पन्न*
*-द्वितीय सत्र में काव्य अनुष्ठान का आयोजन*
" *भाव की अभिव्यंजना में खो गया हूँ आज कल।*
*मैं लिखूँ कविता कोई, या लिखूँ कोई ग़ज़ल?"*
गया मे राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था 'शब्दाक्षर' की त्रैमासिकी 'शब्दाक्षर पत्रिका' के अप्रैल-जून 2022 अंक का लोकार्पण अंतर्राष्ट्रीय कवि मनवीर मधुर, प्रधान अतिथि-सह-शब्दाक्षर के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि प्रताप सिंह, कार्यक्रम अध्यक्ष-सह-शब्दाक्षर उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष महावीर सिंह 'वीर', मुख्य अतिथि-सह-उड़ीसा प्रदेश अध्यक्ष किशन खंडेलवाल, विशिष्ट अतिथि-सह-शब्दाक्षर तमिलनाडु प्रदेश अध्यक्ष केवल कोठारी, शब्दाक्षर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह 'सत्य', सहित 'शब्दाक्षर' के अन्य सम्मानित साहित्यकारों की गौरवमय उपस्थिति में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। लोकार्पण समारोह का शुभारंभ कार्यक्रम का संचालन कर रहीं 'शब्दाक्षर' की राष्ट्रीय प्रवक्ता-सह-प्रसारण प्रभारी प्रो. डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी के द्वारा प्रस्तुत सुमधुर स्वरचित सरस्वती वंदना "ज्ञान दे, सुर तान दे, माँ शारदे, वरदान दे। अज्ञानता का नाश हो, सत्कर्म पर विश्वास हो, भव बंधनों से मुक्त कर, सबके हृदय में स्थान दे..." से हुआ। तत्पश्चात हरियाणा की प्रदेश साहित्य मंत्री मीनाक्षी शर्मा ने मंचासीन अतिथियों के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालते हुए स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। लोकार्पण विभूति कवि मनवीर मधुर, पत्रिका के प्रधान संपादक रवि प्रताप सिंह व संपादक डॉ आदर्श प्रकाश सहित मंचासीन सभी गणमान्य अतिथियों ने पत्रिका के सफल लोकार्पण पर खुशी जताते हुए पत्रिका की सारगर्भित समालोचनात्मक समीक्षा की। राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सिंह ने बताया कि 'शब्दाक्षर' की इस त्रैमासिकी में देश के प्रतिष्ठित रचनाकारों द्वारा विभिन्न पद्य तथा गद्य विधाओं में लिखित स्तरीय रचनाएँ संकलित हैं।
शब्दाक्षर पत्रिका लोकार्पण समारोह के द्वितीय सत्र में सरस काव्य अनुष्ठान का आयोजन हुआ जिसमें मंचासीन अतिथियों तथा आमंत्रित रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक कविताएँ पढ़ीं। कवि मनवीर मधुर ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित, "मन में राम नहीं हों, तो ये तन रावण हो जाता है....राम भक्त को लंका में भी राम भक्त मिल जाता है...बिना राम के तो रावण भी मोक्ष नहीं पा सकता है" जैसी ओजमयी स्वरचित पंक्तियों से काव्यानुष्ठान को राममय बना डाला। उनकी "जीवन में प्यार जो करो तो इतना करो कि होठ चुप अँखियों का पानी बोलने लगे..." पंक्तियों पर खूब वाहवाहियाँ लगीं। रवि प्रताप सिंह की कविता, "भाव की अभिव्यंजना में खो गया हूँ आज कल, मैं लिखूँ कविता कोई, या लिखूँ कोई ग़ज़ल?..", महावीर सिंह वीर के मुक्तक "भाव में निज राष्ट्र के प्रति भक्ति होनी चाहिए, ज़िंदगी भर सिर्फ अपना ग़म लिखा तो क्या लिखा, लेखनी हर दर्द की अभिव्यक्ति होनी चाहिये..", कवयित्री अंजू छारिया की, "तुम मनाओगे आकर मुझे आज फिर, बस यही सोच कर रूठ जाती हूँ मैं..", सत्येन्द्र सिंह 'सत्य" की "काव्य यज्ञ के आयोजन में रहता सदा शुमार, शब्दाक्षर के शंखनाद से गूंज रहा संसार", कवि प्रवीण राही की, "अपनी गरज की देखिए रोटी को सेंकने, ईंधन की तरह रोज जलाया गया मुझे...", कवि केवल कोठारी की "लड़खड़ाती ज़ुबाँ, शब्द ही खो गये...", किशन खंडेलवाल की "संसद में बैठे लोगों को जूतों से लड़ते देखा है..." व सुमित मानधना की, "माँ की लाडली, पिता की दुलारी होती हैं। बेटियाँ तो जान से प्यारी होती हैं.." सुनकर श्रोतागण झूम उठे।
लोकार्पण समारोह की सफलता पर खुशी जताते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष कवि महावीर सिंह 'वीर' ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रधान संपादक रविप्रताप सिंह सहित संपादक मंडल के सभी सदस्यों, संचालिका डॉ रश्मि प्रियदर्शनी, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी निशांत सिंह गुलशन, राष्ट्रीय उपसचिव सागर शर्मा 'आजाद', फेसबुक पेज से लाइव प्रसारण में तकनीकी सहायता प्रदान करने वाली इशिता नारायण, सूरज नारायण, तेलंगाना प्रदेश अध्यक्ष ज्योति नारायण, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष दया शंकर मिश्र, राष्ट्रीय सचिव सुबोध कुमार मिश्र व शब्दाक्षर के सभी पदाधिकारियों एवं सदस्यों को शुभकामनाएँ दीं। धन्यवाद ज्ञापन शब्दाक्षर दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण राही ने किया।
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