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सोमवार, 13 मार्च 2023

रोज ज़िन्दगी की जंग लड़ती अद्भुत चित्रकार श्वेतपद्मा

 बुलन्द हौसलों के बल पर कला का परचम लहराती श्वेतपद्मा


रिपोर्ट : उदय कुमार झा


कहा जाता है कि बुलन्द हौसले के बल पर इन्सान असंभव भी सम्भव कर देता है । दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति के हौसले जीवन के झंझावातों से नहीं टूटते ; अपितु निखरते ही चले जाते हैं, जैसे सोना आग में तपकर अपनी पूरी निखार प्राप्त करता है । यही बात ओड़िशा के क्योंझर जिले की रहनेवाली श्वेतपद्मा मिश्रा के जीवन में भी चरितार्थ होता दिखता है । 




श्री बिरंचि नारायण मिश्रा एवं श्रीमती सुलोचना मिश्रा के घर 24 जुलाई, 1991 ई.में एक नन्हीं सी परी का जन्म हुआ। घरवाले लक्ष्मी के आगमन पर फूले नहीं समा रहे थे। इस नन्हीं सी परी का नाम रखा गया - श्वेतपद्मा ।  धीरे-धीरे वह लड़की बढ़ने लगी और उम्र बढ़ने के साथ ही उसमें कला के प्रति रुझान देखने को मिलने लगा । घर में उसकी दादी अहल्या देवी चावल पीसकर और उसका घोल बनाकर ज़मीन पर बहुत सी सुन्दर और बारीक कलाकृतियां बनाया करती थी और श्वेतपद्मा उन कलाकृतियों को देखकर उसे बनाने का प्रयास अपनी छोटी हाथों से करती । शनै:शनै: समय का पहिया आगे बढ़ता गया और श्वेतपद्मा ने बॉटनी से स्नातक परीक्षा पास करने के बाद 2018 ई.में इतिहास विषय लेकर एम.ए. की परीक्षा पास की। फिर 2019 ई.में बी.एड. की परीक्षा भी उत्तीर्ण की । नियति तो श्वेतपद्मा की जैसे परीक्षा लेने को बेसब्र थी, ऐसा इसके जीवन की कठिनाइयों को देखने के बाद पता चलता है । 2014 ई.में श्वेतपद्मा एक गम्भीर बीमारी की चपेट में आ गई । न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर से परेशान श्वेतपद्मा ज्यादा देर तक खड़ी नहीं रह पाती । उसे चक्कर आने लगता और उल्टी होने लगती । फिर वह अचानक गिर जाती । आँखों की पूरी रोशनी ही गायब हो गई । अब घरवाले परेशान हो गए । चिकित्सकों की सलाह पर श्वेतपद्मा को भुवनेश्वर स्थित अपोलो अस्पताल में भर्त्ती करवाया गया । वहाँ डॉक्टरों ने बताया कि इस लड़की को न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर है जिसके कारण इतनी परेशानी हो रही है । फिर सर्जरी कर मस्तिष्क से लेकर पेट तक कृत्रिम ट्यूब लगाए गए । उसके बाद श्वेतपद्मा के आँखों की रोशनी 40%  वापस आ गई । फिर 2016 और 2018 में भी उसकी सर्जरी अपोलो अस्पताल, भुवनेश्वर में हुई । डॉक्टरों के मुताबिक उसके शरीर में लगे ट्यूब्स जाम होने लगते हैं । फिर उनको साफ कर फिट किया जाता है । इस प्रकार का जीवन जी रही श्वेतपद्मा आँखों की मात्र 40% ज्योति के बल पर कितनी बारीक और सुन्दर मण्डला चित्रकला बनाती है, वह देखने के बाद ही पता चलता है । 

मण्डला आर्ट मधुबनी चित्रकला की तरह वैदिक सभ्यता और तन्त्रशास्त्र पर आधारित चित्रकला है । इस चित्रकला में इतना बारीक काम होता है कि देखनेवालों की आँखें मानो बरबस ठहर सी जाती हैं । श्वेतपद्मा कहती हैं कि वह इस चित्रकला का काम तो यद्यपि अपनी दादी से प्रेरित होकर बचपन से ही करती आ रही है, किन्तु 2019 ई.से ज्यादा सक्रिय हो गई । शारीरिक रूप से असमर्थ होने के कारण श्वेतपद्मा राष्ट्रीय स्तर की बेहतरीन चित्रकार होने के बाद भी अपनी कला का प्रदर्शनी लगाने बाहर नहीं जा पाती और न ही किसी समारोह में भाग ले पाती, क्योंकि उसे हमेशा चक्कर आने और गिरने का डर बना रहता है । फिर भी ओड़िशा के महामहिम राज्यपाल प्रो.गणेशी लाल ने 2022 ई.में उसे राजभवन बुलाकर सम्मानित किया और उसके द्वारा बनाए गए चित्रों की खूब तारीफ की । 

श्वेतपद्मा कहती है कि सामान्यतः लोग उसे प्रोत्साहित नहीं करते । उसकी अस्वस्थता की ओर न देखते हुए उसे नौकरी करने की सलाह देते हैं, इंटरव्यू में जाने की बातें कहते हैं । किन्तु उसके पिता श्री बिरंचि नारायण मिश्रा(अवकाशप्राप्त सरकारी कर्मचारी) एवं माता श्रीमती सुलोचना मिश्रा(सरकारी स्कूल में शिक्षिका) उसकी हौसला अफजाई लगातार करते रहते हैं । साथ ही छोटा भाई सार्थक मिश्रा(उम्र-28 वर्ष), जो अब जॉब में है, जब फुर्सत में रहता है तब अपनी बहन के साथ समय बिताता रहता है । "क्योंझर कला उत्सव" में श्वेतपद्मा  एक बार अपनी कला का प्रदर्शन की ।

ओड़िया अखबार एवं ओड़िया भाषा के टीवी चैनलों ने भी श्वेतपद्मा का समाचार प्रकाशित कर उत्साहित किया । ओड़िया पत्रकार देवीशंकर दास के प्रति भी वह आभार व्यक्त करती है, जिन्होंने इसे आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया । श्वेतपद्मा बतलाती है कि उसके दिमाग से पेट तक आनेवाली ट्यूब रीढ़ होते हुए गुजरती है, जिससे सामान्य मनुष्यों की तरह वह काम नहीं कर पाती, उसकी कार्यक्षमता घट गई है । किन्तु, श्वेतपद्मा मिश्रा के हौसले ही इतने बुलन्द हैं कि मण्डला आर्ट जैसी महान चित्रकला को वह अपना चुकी है और उसकी कलाकृतियां लोगों का मन मोह रही हैं ।

एक चित्रकार होने के साथ ही श्वेतपद्मा एक अच्छी कवयित्री भी है । हिन्दी में इसकी एक कविता संग्रह -"अर्क - उन्मत भावनाओं का शिलान्यास" प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें 50 कविताएँ एवं कुछ कलाकृतियां संगृहीत हैं ।

 आज आवश्यकता इस बात की है शारीरिक विषम परिस्थिति से नित्य जूझ रही इस महान कलाकार की हौसला अफजाई कर इसके मनोबल को कायम रखा जाए और सरकारी स्तर पर उपलब्ध सुविधाएँ दी जाएं ।

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