अपने ही जाल में फंसे नीतीश कुमार : विजय यादव
साभार : सुमित कुमार राउत
मधुबनी जिले के फुलपरास विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी विजय कुमार यादव ने जाति जनगणना को लेकर नीतीश कुमार पर निशाना साधा। मुंबई से फोन के जरिये मीडिया से हुये बातचीत मे उन्होंने कहा कि बिहार जाति सर्वेक्षण किया गया, जिसमे 215 उप-जातियों को शामिल किया गया है, जबकि सन 1931 के बाद यह कवायद की गई है। उस समय अंग्रेजों ने समाज को बांटने के लिए इसे हथियार बनाया था। आज बिहार की सरकार ऐसा करके राजनीतिक रोटी सेंकने की कोशिश कर रही है। दोनों में कोई फर्क नहीं है। दरअसल, जब कोई सरकार या नेतृत्वकर्ता पूरी तरह से अपने को असफल समझ लेता है, तो चुनाव में जाने के लिए जनता को टुकड़ों में बांटकर या यों कहें समाज को विकृत कर सत्ता हासिल करना चाहता है, जैसा कि नीतीश कुमार की सरकार ने किया है। यह बेहद दु:खद है कि जिस बिहार में लगभग पिछले चार दशकों से लालू यादव, राबड़ी देवी और नीतीश कुमार की ही सरकार रही है, जो पिछड़े और अति पिछड़े से ही आते हैं और वे आज भी बांटने की ही राजनीति के सहारे अपने को खड़ा पाते हैं? सरकार को सबसे पहले यह बताना चाहिए था कि कैसे जातीय जनगणना इन जातियों के जीवन स्तर को उठाने में मदद करेगी। अगर यह सही भी है, तो पिछले दशकों से वे क्या कर रहे थे? यह मुद्दा वास्तव में कई ऐसे जटिलताओं को खड़ा कर सकता है, जो जातीय संघर्ष का रूप ले लेगा लेकिन इन नेताओं को तो इससे कुछ लेना देना ही नहीं है, उन्हें तो सिर्फ़ वोट बैंक की चिंता है। जबकि प्रत्येक जनगणना में एससी और एसटी की संख्या पता होती रहीं है, केन्द्र का स्वास्थ्य विभाग भी ऐसा करता रहा है। विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु भी समय-समय होती हैं।
ऐसा था तभी तो मण्डल कमीशन ने पिछड़ी जातियों की संख्या 56% बताया था। जबकि नीतीश कुमार की गणना में मुस्लिमों की पिछड़ी जातियों को हिंदू पिछड़ी जातियों में शामिल कर प्रतिशत बढ़ा दिया गया, जबकि इसी मुस्लिमों की अगड़ी जातियों को हिंदुओं की अगड़ी जातियों शामिल नहीं किया गया, है न मजेदार खेल! अगर जनसंख्या की पैमाना है, तो नीतीश कुमार किस आधार पर मुख्यमंत्री हैं? उनकी जाति की आबादी तो सिर्फ़ 2.68% ही है। उनसे ज्यादा तो मुसहर, कानू और कुशवाहा जातियों की संख्या है। वही, नीतीश कुमार 18 साल से मुख्यमंत्री हैं, प्रश्न वाजिब है कि क्या कर रहे थे, क्यों नहीं इन जातियों के लोगों का जीवन स्तर अच्छा हो पाया? कुल मिलाकर आज नीतीश कुमार अपने ही जाल में फंस गए हैं। अब उन्हें अपना पद तुरंत छोड़ देना चाहिए तथा सबसे बड़ी जाति के अगुआ को मुख्यमंत्री पद सौप देना चाहिए। सवाल है कि क्या ऐसा होने वाला है या फिर पिछड़ों-दलितों की राजनीति करने वाले नेता और दल कुल 63% ओबीसी की रट लगाकार अब तक की सड़ी-गली सियासत को ही आगे बढ़ाएंगे।
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