"शिक्षा का केंद्र संग्रहालय" विषय पर एकदिवसीय संगोष्ठी आयोजित
न्यूज डेस्क : मधुबनी
दरभंगा : दिनांक 23/12/2024 को कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के चंद्रधारी संग्रहालय, दरभंगा में संग्रहालयाध्यक्ष डा शंकर सुमन की अध्यक्षता में 'शिक्षा का केंद्र संग्रहालय' विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजित की गई। मुख्य अतिथि डॉ भास्कर नाथ ठाकुर, विभागाध्यक्ष, प्रा. भा. इतिहास पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग, MLSM महाविद्यालय, अतिथि डॉ उदय नारायण तिवारी, पूर्व विभागाध्यक्ष, प्रा. भा. इतिहास पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग, LNMU एवं डॉ अखिलेश कुमार विभु, विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, चन्द्रधारी मिथिला महाविद्यालय दरभंगा थे।
आगत अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवेश संग्रहालयाध्यक्ष डा शंकर सुमन ने किया। उन्होंने संग्रहालय का क्रमिक इतिहास एवं मानव जीवन में इसकी उपयोगिता को रेखांकित करते हुए कहा कि- "1784 ईस्वी में सर विलियम जॉन्स के द्वारा एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की स्थापना की गई, जो संग्रहालय आंदोलन की शुरुआत थी। 1814 में डॉ बालिच ने सोसायटी हेतु एक संग्रहालय के लिए जोड़ दिया, यही संग्रहालय भारतीय संग्रहालय कलकत्ता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। संग्रहालय में संजोए गए धरोहरों के द्वारा हमें अपनी समृद्ध अतीत के बारे में जानकारी मिलती है।"
अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए डॉ विभु ने कहा कि - "संग्रहालय न केवल शिक्षा, बल्कि भविष्य एवं सांस्कृतिक संरक्षण का केंद्र भी है। महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय दरभंगा में हाथी दांत के कला वस्तुओं का दुर्लभ भंडार है, जिसके बारे में यहां आकर अध्ययन की जा सकती है। संग्रहालय प्राचीन काल के विविधताओं का अध्ययन केंद्र भी है, जहां हर विद्यार्थियों को आना चाहिए।"
अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए डॉ तिवारी ने कहा कि - "मनुष्य तार्किक प्राणी है और जब ये संग्रहालय आते हैं तो इनकी तार्किकता सिद्ध होती है। यह दृश्य शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र है, जहां आप मनोरंजक रूप से अध्ययन कर सकते हैं।"
अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए मुख्य अतिथि डॉ ठाकुर ने कहा कि - "संग्रहालय में आने के बाद ही लोग, संस्कृति एवं परंपरा संबंधी अपनी मूल अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करता है। इसी संस्कृति एवं परंपरा संबंधी ज्ञान को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने हेतु संग्रहालय का निर्माण किया गया। यहां आकर हम अपनी सांस्कृतिक विविधताओं को समझते हैं।"
पुरातत्त्व विषय के शोधार्थी मुरारी कुमार झा ने मंच संचालन का कार्य संपादित करने के साथ अपना शोधालेख प्रस्तुत करते हुए कहा कि- "संग्रहालय आने से हम सीधे तौर पर अपने प्राचीन एवं पूर्व कालिक सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, कृषि, पशुपालन, पर्व त्यौहार, खानपान, प्रकृति आदि विषयों के बारे में जानते हैं। संग्रहालय निर्माण के पूर्व हमारे देश में दृश्य शिक्षा के रूप में तीर्थाटन था, जो पारंपरिक रूप से आज तक चली आ रही है। इसी का आधुनिक स्वरूप पर्यटन है।"
इस दौरान रंजीत कुमार, पूर्णिमा कुमारी, गिरिंद्र मोहन ठाकुर, गौतम प्रकाश, पुष्पांजली कुमारी, कुमारी पलक, श्रवण कुमार, रिया कुमारी, सहाना खातून, अभिषेक आनंद आदि दर्जनाधिक शोधार्थियों एवं छात्र-छात्राओं ने आलेख प्रस्तुतिकरण किया।
धन्यवाद ज्ञापन संग्रहालयाध्यक्ष डा शंकर सुमन ने किया। इस मौके पर सैकड़ों प्रोफेसर, अध्यापक, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं अध्येता मौजूद थे।
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