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बुधवार, 3 सितंबर 2025

"मृद्भण्डावशेषों का रख-रखाव" विषय पर एकदिवसीय व्याख्यानमाला आयोजित

 "मृद्भण्डावशेषों का रख-रखाव" विषय पर एकदिवसीय व्याख्यानमाला आयोजित






न्यूज़ डेस्क : मधुबनी




   दिनांक 03/09/2025 को ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग के द्वारा प्रो. संजय कुमार झा, विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, ल.ना.मि.वि. की अध्यक्षता में 'मृद्भांडावशेषों का रख-रखाव' विषयक एक दिवसीय व्याख्यान आयोजित की गई। मुख्य वक्ता सह मुख्य अतिथि डॉ भास्कर नाथ ठाकुर, से.नि. विभागाध्यक्ष, प्रा. भा. इतिहास पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग, MLSM महाविद्यालय, दरभंगा और वक्ता पुरातत्त्व विषय के विभागीय शोधार्थी मुरारी कुमार झा थे।


             अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए वक्ता श्री झा ने कहा कि - "ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन के लिए अतिमहत्वपूर्ण पुरातात्त्विक साक्ष्यों में से एक है, मृद्भांडावशेष। हमारी आगामी पीढ़ी अपने विगत संस्कृतियों से परिचित हो सके, इसके लिए हमें आज इसे संरक्षित कर रखने की आवश्यकता है। मृद पात्रों में नमी, धूल के कण, दूषित हवा, सूर्य का सीधा प्रकाश, मानवीय असावधानी आदि से क्षरण होता है। नमी से बचाने के लिए ससमय सिलिका जेल एवं जलावन के सूखे कोयले का प्रयोग, धूल से बचाने के लिए ससमय सूखे ब्रश से झाड़ने के साथ अनुकूल जगह एवं वातावरण में रख कर इसे लंबे समय के लिए संरक्षित किया जा सकता है।"


           अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए मुख्य वक्ता सह मुख्य अतिथि डॉ ठाकुर ने कहा कि- "इतिहास का अध्ययन अन्वेषण एवं विश्लेषण की बुनियाद पर टिकी रहती है। हमारी लोक संस्कृति भी इतिहास निर्माण की प्रमुख पारंपरिक स्रोत हैं और इसके अध्ययन का प्रारंभिक पुरातात्त्विक स्रोत है, मृद्भाण्ड! इन पुरातात्विक साक्ष्यों को संरक्षित कर आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित सौंपना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेवारी है। मृद्भाण्डों के उचित रख-रखाव के लिए जितना आवश्यक मानवीय सावधानी और जागरूकता है, उतना ही रासायनिक प्रयोगों के द्वारा उसमें हो रहे क्षरण को रोकना। हर पुरावशेष की अपनी अलग प्रकृति होती है, जिसे समझे बिना हम उसे अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान नहीं कर सकते।"


             अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. झा ने कहा कि - "मृद्भाण्ड भारत के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में सांस्कृतिक अध्ययन हेतु एक विशिष्ट धरोहर है। यह न केवल हमारे अतीत की जीवनशैली से परिचय कराता है, बल्कि सांस्कृतिक निरंतरता एवं तकनीकी कौशल का भी सचित्रता प्रस्तुत करता है। इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संरक्षण एवं व्यवस्थित रख-रखाव अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि, इसके माध्यम से इतिहास से संबंधित विभिन्न अनसुलझे रहस्योद्घाटन होते रहते हैं।"


            व्याख्यान के उपरान्त 'महावीर केवल फाउंडेशन, मुंबई' के द्वारा छात्रों एवं आम जनों के बीच ऐतिहासिक धरोहर के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रा. भा. इ. पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के लिए पुरातत्त्व विषय के शोधार्थी सह वक्ता मुरारी कुमार झा के माध्यम से राजस्थान के मकराना मार्बल से निर्मित क्षत्रियकुंड, जमुई(बिहार) में स्थापित जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी की प्रतिमा का एक प्रतिकृति भेंट स्वरूप प्रदान किया गया, जिसे विभाग को सौंपी गई।


          व्याख्यान को सफल बनाने में विभागाध्यक्ष डॉ. अमीर अली खान की सक्रिय भूमिका एवं विशेष योगदान उल्लेखनीय रहा। उन्होंने पूरे आयोजन के समन्वय, मार्गदर्शन और प्रबंधन में अहम भूमिका निभाई। 


         मंच संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन विभागीय अतिथि शिक्षिका डॉ. प्रतिभा किरण ने किया। 


         इस अवसर पर अविनाश कुमार, पूर्णिमा कुमारी, चंदा कुमारी, सन्नू कुमारी, शिवांशी झा, निधि कुमारी, बबीता कुमारी, प्रियरंजन कुमार, मेहुल आनंद, मुकेश यादव, तुलानंद कुमार, सुमित कुमार, मिंटू कुमार आदि शोधार्थी, विद्यार्थी एवं अध्येता मौजूद थे।

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